Sunday, March 18, 2012

मुर्गा बोला (भाग -५)

मुर्गा बोला -कुकड़ू कूं
आ नहीं पाया होली में
नाराज तुम होती हो क्यूँ ?


जानता हूँ .........
फागुनी बयार ने ...
भौरों के गुंजार ने ...
पलाश के दहकते श्रृगार ने ....
वसंत दूत की मीठी कूक ने ...
मेरे वियोग में ,दिल में उठी हूक ने ....
तुम्हे  जी भरतडपाया होगा ..........


पिछली होली की यादों ने
मेरे द्वारा किये गये वादों ने
तेरा दिल बहुत दुखाया होगा पर ........?
याद रखो जीवन में चाही गई कई इच्छाएं .......
नहीं हो पाती हैं पूरी
जीवनसाथी हो मेरी
समझो मेरी मज़बूरी .



इंतजार करो मिलन के
स्वर्णिम क्षणों का जब ....
करूंगा हर कमी क़ी भरपाई
उत्साह औ उमंग के रंग से
रंगेगा खुशियों भरा संसार हमारा
मुर्गी रानी मान भी जाओ
तुम बिन मेरा कौन सहारा ?






मुर्गी बोली .........
नाराज नही हूँ मै......
मेरे दुःख  को समझो यार
एक दूजे के गम को हर ले
इसे कहते हैं प्यार .......



फूलों पर मंडरा रही है
तितलियाँ हौले -हौले
कोयल ,मोर .पपीहा बोले
भेद प्रणय के सभी हैं खोले
मदनोत्सव (होली ) के रंगीन माहौल में
चैन नही यहाँ ......
विरहाग्नि से दग्ध उर से
आवाज आ रही .......
मोरे पिया तूं कहाँ ?



तो क्या हुआ ?
तुम बिन गुजरी मेरी होली ....
यादें थी पिछली होली क़ी
थी नही मै अकेली ......

विश्वास औ प्यार भरा साथ हो गर ...?
जीवनसाथी का तो ????????/
हर दिन होली और हर रात दिवाली होती है
तन- मन प्यार के रंग रंगे
यही  तो जीवन क़ी ज्योति है .....

जीवनसाथी का साथ है ऐसे जैसे
नदी औ किनारा
मुर्गे राजा ! मुझको चाहिए
केवल औ केवल साथ तुम्हारा .......




मुर्गे -मुर्गी के संवाद ने अगर आपको थोड़ी सी भी खुशियाँ दी हो तो
कृपया अपने विचार अवश्य लिखें .भले मेरे साथ न्याय न करें पर अपने
साथ अन्याय क्यों ???????///धन्यवाद गुप्त दोस्त ..