Thursday, February 28, 2013

तेरा साथ

जिन्दगी तेरे साये में .....
क्या छोडूँ ?
क्या पास  रखूँ ?
दिन-रात सुलगते,...
 अरमानों से ...
क्यों न दो-दो हाथ करूँ ?

जो होना है ..वो ...
हो कर रहेगा ...(मैं भाग्यवादी नहीं कर्मवादी हूँ )
क्यों ? तुम से
फरियाद करूँ .....


साल दर साल आगे बढ़ी
कितना कुछ पीछे छूट गया .....
देखते ही देखते .....
काफ़िला आँखों से ...
ओझल हो गया .....

तुमने दिया
तुम ही ने लिया
क्या दोष था मेरा .....
समझ नहीं पाई अब तक ....
सत्य क्या है तेरा ?

दर्द के दरिया में
दिल जब घबराता है
तभी जिन्दगी तेरा ....
असली रूप नज़र आता है ......

तूने आजमाया अबतक ...
अब मैं आज्माउंगी ....
वादा है ऐ जिन्दगी ..
तेरा साथ निभाउंगी ....




Thursday, February 14, 2013

पता नहीं

था अँधेरा बहुत मैंने
चिराग जला दिया ..
पता नहीं कैसे घर में .......
आग लगा दिया .....

Monday, February 4, 2013

.कब तक ?

दिनभर चलते-चलते थककर चूर 
दिनकर प्रियतमा के आगोश में समा रहा है .......
जमीं और आसमां के मिलन का प्रतीक बन ...क्षितिज ...
इन्द्रधनुषी रंग बिखरा रहा है ......

लौट रहें हैं पंछी भी,.......
 कलरव करते  हुए अपने बसेरे की ओर .....

मिलन के अभूतपूर्व आनंद से ....आह्लादित  है ...
प्रकृति का हरेक छोर .....

.भ्रमवश ...पथ भटके हुए पथिक तुम ..कबतक ?????
यूँ ही खुद को भरमाओगे ?
इन्तजार में व्याकुल है ..घर-द्वार तुम्हारा .....तुम ..कब तक ?
घर को लौट आओगे ?