Tuesday, April 30, 2013

बेशक ...

मन का पाखी 
उड़ता जाये 
बीते पल को 
कौन लौटाए ......

माँ की ममता 
पिता का प्यार 
बहन और भाई 
से तकरार .....

यादें याद आती हैं 
उन गलियों में 
ले जाती है .....

क्यों हो मन 
इतना उदास ?
बिखर गए जो 
बस जायेंगे 
करना होगा 
तुम्हें प्रयास ......

ख़ुशी के पल 
जब नहीं रहे ..तो… 
दुःख के भी हट जायेंगे 
मधुरिम यादें ..
कड़वी हुई  ,......तो .....
मीठे भी हो जायेंगे ....

बीते पल के साए में 
भविष्य अंकुरित होता है  
अंकुरण की इसी 
प्रक्रिया में 
जीवन का सत्य छिपा होता है 




सत्य को अपनाओगे 
तभी सत्य को तुम पाओगे ......
आओ सत्य को पाने के लिए 
करें हम प्रयास .....

अतीत की छाँह तले 
वर्तमान को खिलखिलाने दें 
सतरंगी सपने लिए भविष्य को गुनगुनाने दें ....

बेशक .......
बीते पल को याद रखें.... पर .....
वर्तमान को कभी हाथ से न जाने दें 
हाथ से न जाने दें ......




Monday, April 22, 2013

ओ दिमाग वाले



जहाँ जोड़ना चाहिए 
वहाँ घटा देती हूँ 
जहाँ घटाना चाहिए 
वहाँ जोड़ देती हूँ 

तुम  कहते हो  ..मै ...हमेशा 
कैलकुलेशन में लगी रहती हूँ 

ऊपर वाले की माया है ये 
ये तो वही जाने ...

मेरी किसी बात को 
कभी ना तुम  माने 

ओ दिमाग वाले ...

दिमाग के सारे काम 
दिल से निबटाती हूँ ....
इसीलिए हमेशा .
.कैलकुलेशन में गड़बड़ा जाती हूँ ....

दिल और दिमाग से 
विश्वास के बलबूते ..मैं  ..
एक हीं काम करती हूँ 
जितना फैल सकती हूँ 
फैल जाती हूँ ....

अगले हीं पल पुनः  
सिमट जाती हूँ ....

इस क्रम में 
जमीं मेरी राहों में 
आसमां मेरी बाँहों में और 
खुशियाँ निगाहों में होती है ..

जमीं ,आसमां और खुशियों के बीच ....तुम्हें   ...ये 
कैलकुलेशन कहाँ दिख जाता है ? 
कल भी  मुझे मालुम न था 
न आज  कुछ पता है ......

Wednesday, April 17, 2013

इसीलिए ..निशा ......

पिताजी ने सिखलाया था कि .....गर ...

राह के काँटे तन और मन को ..लहुलहान ..करने लगे ..तो  ?
राह बदल लेना 
सामने के नज़ारे ..
दिल को दहलाने लगे ..तो…?
आँखें मूंद लेना ...

मित्रता में अगर .....
समानता  न हो 
समभाव न हो 
मैत्रीभाव न हो ..तो ..?

ऐसी मित्रता को छोड़ देना ..क्योंकि ..

मंजिल स्पष्ट है तो रास्ते  मिल हीं जायेंगे 
आँखें हैं तो नज़ारे भी दिख जायेंगे 
जिंदगी रहेगी तो ...?
मित्र भी बन जायेंगे ....किंतु .....

खुद की नज़रों से गिरकर ..
कैसे जी पाओगी ?

इसीलिए ..निशा ......

जिन्दगी में हर फैसला 
सोच -समझ कर करना 

खुद की नज़रों में गिर जाओ 
ऐसा काम कभी नहीं करना .....

Saturday, April 13, 2013

रात मेरे सपने में .....





रात मेरे सपने में 
मेरी दीदी  आई थी 
मेरे दर्द का एहसास ...शायद ...
उसकी रूह को  खींच लाई थी ....

देख ग़मगीन मुझे  .   उसने     .सिर्फ
 इतना हीं कहा ...

जिसे छोड़ चुकी हो क्यों,... उसे..?
 याद करती हो ?
वेबजह क्यों खुद को 
उदास करती हो ...

ऐसा लगा जैसे  
मरुस्थल में मीठे ..
पानी का सोता मिल गया 

रिसते हुए जख्म पर .मानों .
शीतल मरहम लग गया .....

उदासी भरे पल  को 
अतीत  का झरोखा मिल गया 
वर्तमान के  दुःख का बादल ..
खुशियों से ढँक गया ......

दिल को हुआ यकीन ..
दीदी,...... तुम हो यहीं कहीं ..



तुम्हारे  आसपास होने का 
एहसास हीं मन को संबल देता है 
मालूम  है मुझे  कि ....

जीवन पथ पर हर इंसान
 अपने दम पर हीं खड़ा होता है ....
अपने दम  पर हीं खड़ा होता है ......


.


Tuesday, April 9, 2013

सब कुछ


सोचा न था जो सपनों में

 वो आज सामने आया है 

बनकर यादें ...कुछ भूली सी

 इक याद दिलाने आया है      

  पाकर तुमको ..तेरे अपनेपन को     

    ह्रदय   से लगाए बैठी हूँ ..    

    सब कुछ पाया ..सब कुछ खोया        

  तुम-तुम हीं रहे ..मैं -मैं न रही ...

Friday, April 5, 2013

होते हीं हैं ......

रात में सहर
फूल में काँटें
मोहब्बत में मुलाकातें ....


दिल में दर्द
आँखों में सपने
परायों में अपने .....


समुन्दर में लहरें
बाग़ में भँवरे
ज़ख्म  बड़े गहरे ...


स्वार्थ में छल
जीत में हर्ष
जीवन में संघर्ष .....होते हीं हैं .....

Tuesday, April 2, 2013

अंतत:

          

चूल्हे में सुलग रही लकड़ी से

 पासवाली लकड़ी बोली ....

क्यों .....सुलग रही हो बहना ? 

बेहिचक तुम बोलो ....

गैर नहीं, हूँ अपनी .....भेद दिल के   खोलो .....

 सुलगती हुई लकड़ी तब ...धीरे से बोली ..

ये मत सोचना कि धुओं और ..चूल्हों के बीच 

पहचान मेरी खो गई है ...

 सच तो यही है बहना  कि ...

मेरी यात्रा ..अंतत:पूरी हो गई है ......

 विषम परिस्थितियों में भी मैं ..

.कभी नहीं हारी ....

कर लो हिम्मत तुम भी ..

आएगी तेरी भी बारी .....

 बनते हीं  ज्वाला दसों दिशाएं

 मुझसे मिल रहीं हैं ....

सुलग-सुलग कर आखिर ...

मेरी मंजिल मुझको मिल गई है ...

मंजिल मुझको मिल गई है .....