Wednesday, December 31, 2014

राहें थीं जानी-पहचानी

राहें थीं जानी-पहचानी 
राहगीर थे मगर अनजान 
निशा की ओट से देखो कैसे 
झाँक रहा बिहान ----

कृत्रिमता से दूर रहकर 
स्नेह सदा सहेजना 
जलना धूप -अगरबत्ती बन 
मेरी बातों का मर्म समझना ----

वर्तमान अतीत बन कर 
कागज के पन्नों में समा गया 
भविष्य भावों में ढलकर 
वर्तमान पे छा गया --

तेरी खुशियाँ -तेरे सपने 
सारे हो साकार 
विदा लेते कह रहा २०१४ 
२०१५ ले रहा आकार … 
                                    सभी  ब्लॉगर साथियों को नए वर्ष की बहुत -बहुत शुभकामनाएं --- 
भगवान करे इस नए साल में आपको, आपके स्तर के दोस्त मिले --दुश्मन भी मिले ताकि आपका जीवन काँटों में घिरकर फूलों जैसे खिले। ....... इसके लिए बस आपको  इतना करना होगा कि आप मर्यादित रहें --संयमित रहें साथ हीं साथ .……  अपने और अपने परिवार के प्रति ईमानदार रहें ----अगर मेरे शुभचिंतक हैं तो -----
मुझे भी कुछ सुझाव अवश्य दें---टिप्पणी के रूप में ----- 
समर्पित --पी -एच -डी -कोर्से वर्क की पुरी टीम को। 




Friday, October 10, 2014

मैं मस्ती के संग बहती हूँ

भागती हुई नदी से पूछा मैंने --

क्यों  अपना अस्तित्व मिटाती हो ?
जब देखो सागर से मिलने वेवजह चली जाती हो 
आँखों में गहरा राज़ लिए नदी मुस्कुराई 
प्रकृति की विचित्रताएं भला आज तक किसी को समझ में आई ?
सागर से मिलकर मैं अपना भार हल्का कर  आती हूँ 
बनी रहूँ नदी हमेशा इसीलिए चली जाती हूँ 
जाकर सागर मैं अपना अस्तित्व सुरक्षित कर आती हूँ 
भागकर मिलती उससे पर उड़कर चली आती हूँ 
ताल-तलैया -दरिया सभी को प्यार का राग सिखाती हूँ 
भूले -भटके राहगीरों के प्यास की आग बुझाती हूँ 
अनजाने -पथ पर चल कर मैं गीत मिलन के गाती हूँ 
हूँ अकेली कहने को पर-- साथ सभी के रहती हूँ 
कल-कल निनाद करते-करते मैं ----
मस्ती के संग  बहती हूँ --मैं मस्ती के संग  बहती हूँ। 

Tuesday, September 2, 2014

कब समझोगे सौदाई ?

खुदगर्ज़ी को हमदर्दी का ज़ामा पहनाकर 
बादल ने अपनी प्यास बुझाई 
संबंधों की ये विद्रूपता… 
प्रकृति को कभी रास न आई 
जो जीवन दे सकता था 
उससे हुई तबाही 
छोटी सी इस बात को 
कब समझोगे सौदाई ?

सौदाई -पागल, सनकी, प्रेमी। 

Friday, August 15, 2014

यादें तेरी गलियाँ

यादें तेरी गलियाँ
जब,जबरन मानस पे  छाती है
उखड़ा-उखड़ा दिल रहता है
आँखें छलक जाती है,,,,,,,

अपनों का नेह
वो निश्छल स्नेह
वो ममता की छाया
किसने चुराया ?


छोटी-छोटी बातें हैं
रहस्य है गम्भीर
हँसकर जिसने इनको झेला
उसे कहते हैं वीर,,,,,,,



विचित्रताओं की दुनिया  है
अपनों में  अपना है कौन ?
हर  पल दिल उन्हें ढूँढता
प्रकृति भी है मौन,,,,,,






Tuesday, July 1, 2014

उनको मेरा सलाम

बहुत दिनों के बाद थोड़ी सी राहत मिली है.सोचा इस पल को यादगार बना लूँ  …२९ दिसम्बर २०१३ की रात  में देखे गए सपने की झलक को  २९ जून २०१४ में वास्तविक रूप में घटते  देखा,,,, कोई माने या न माने ,,,,पर मैं मान गई.… मेरे उसी सपने को समर्पित है मेरे दिल के ये उदगार ------

अपने-अपने स्वार्थ की खातिर 
सही राह से भटका देते हैं 
सपना ---सपने में आकर 
मुझे राह दिखलाते हैं ----

नहीं चाहिए ऐसे अपने 
नहीं चाहिए कोई नाम 
मेरे अपने सपने हैं 
उनको मेरा सलाम ------
    


Tuesday, May 13, 2014

बनाना चाहो तो

बनाना चाहो तो 
बिगड़ जाता है 
चाँद चाँदनी की 
 हर कोशिश पे 
खिलखिलाता है 
क्या हुआ  जो
रास्ते पे चट्टान 
आ गिरी 
चट्टान से बचकर 
निकलना मुझे आता है 
बिना कुछ कहे चाँदनी 
खिलखिलाती है 
हो परिपूर्ण बुलंद हौसले से 
चाँद से नज़रें मिलाती है 
उबड़-खाबड़ रास्तों पे 
रहती सबसे हिल-मिल 
लहरों के रथ पे हो सवार 
करती रहती झिलमिल 





Friday, April 18, 2014

उन्हें मालूम नहीं

एक बार फिर किसी ने 
भरते जख्मों को झिंझोड़ा है 
चुनौतियों का समन्दर है 
सम्बल बहुत थोड़ा है.…पर… 

                          उन्हें मालूम नहीं 
लोहे से बनीं नहीं मैं..... जो.…
टूट कर बिखर जाऊँगी 
मोम सी प्रकृति है मेरी,,, मैं.…
पिघलकर फिर जम जाऊँगी

माँ-बहन-बेटी -पत्नी या प्रेमिका हीं नहीं मैं..... 
सृष्टि का  आधार हूँ 
आहों के बीच पली मैं 
खुशियों की किलकारी हूँ 
चुनौती देनेवाले हर शख्स की आभारी हूँ 
जीवन को जीवन देनेवाली मैं 
एक संवेदनशील नारी हूँ.…… 


Friday, March 28, 2014

ओ पलाश

चम-चम -चम चमकते हो 
अग्नि जैसे दहकते हो 
उमंग-उल्लास या फिर 
जो है उसमें संतुष्ट रहने की  चाह 
नहीं किसी से कोई आस 
क्या वजह है तेरी खुशियों की ?
                              बता दे मुझको ओ पलाश -----
मौसम-मस्ती और तन्हाई 
लिए साथ में खुशियाँ आईं 
सौंन्दर्यविहीन वसुंधरा पे 
भाव -विभोर हो जाते हो -----

पथभ्रष्ट  मुसाफिर को 
ये मूलमंत्र बतला देना 
जो दिया है उसको प्रकृति ने 
उसमें जीना उसे सिखा देना 
मेरे,उसके,सबके मन में------
                       ओ पलाश तुम छा जाना--
                        ओ पलाश तुम छा जाना----

Thursday, March 13, 2014

ले लो एक विराम


हौले-हौले झूम के कलियाँ  
नववधू सी शरमा  रही है … 
लिए आँखों में इंद्रधनुषी सपने 
अग्रदूत वसंत का --भौंरा 
गीत मिलन के गा रहा है ---

आम्रकुंज से कोयलिया ने 

पी को है पुकारा ----
कहाँ गया मनमौजी मेरा 
किस सौतन ने घेरा ?

टेसू की  डाली पर छाई 

वासन्तिक बहार 
लिए दामन में सपन-सलोने 
आया रंगों का त्यौहार ---

बचपन ,यौवन और बुढ़ापा 

जीवन के हैं रंग 
काम -काम में हो न जाए 
जीवन ये बेरंग ---

ले लो एक विराम 

कर लो हँसी -ठिठोली 
उमंगों के इस उत्सव को 
भूल न जाना हमजोली ----

प्रकृति  की  इस पुकार को 

न करना नजरअंदाज 
मुरली की  मधुर तान पर --राधारानी ---
झूम रही है आज ---

मन बावला फगुआ गाये 

मस्ती छाई रे 
प्रीत की   पक्की रंग लिए फिर 
होली आई रे …। 
                        आप सभी  को होली की  अग्रिम शुभकामनाएं---


Tuesday, March 4, 2014

बड़े अच्छे लगते हो---

न जाने क्यों तरसते हो 
रह-रह कर मचलते हो 
कभी कटु कभी मृदु 
कौतूहल से भरपूर सत्य ---तुम---
बड़े अच्छे लगते हो---

दुनियाँ आनी -जानी है 
हर शख्स की  अजब कहानी है 
पल-पल बदलते मौसम में 
अटल -अविचल रहते हो 
जिसे  चाहिए जैसा हिस्सा 
वैसा उसे दे देते हो 
सत्य तुम बड़े सच्चे हो -----

विचित्रताओं के हमराज़ 
खुशियों के सरताज़ सत्य ---तुम ---
बड़े अच्छे लगते हो ----

जीवन के हरेक  पड़ाव में 
तेरे साये के शीतल छाँह में 
मैंने जीना सीख लिया है 
क्या बताऊँ ! तेरे संग कैसे 
खुद को मैंने जीत लिया है 
 आगे के जीवन में भी 
संग हमेशा रहना 
बनकर निर्झर निर्मल जल का 
बूँद -बूँद बरसना 
हंसी-ठिठोली करते तुम 
प्यारे से बच्चे लगते हो 
सपनों के सृजक सत्य --तुम--
बड़े अच्छे लगते हो --

   ब्लॉगर साथियों नेट की आँख -मिचौनी की  वजह से १ मार्च के लिय़े लिखी गई रचना को आज पोस्ट कर रही हूँ। सत्य  और उसकी सच्चाई के साथ मेरे जीवन के अनुभवों का निचोड़ है इसमें -----

Thursday, January 30, 2014

गाती जाए सोन चिरैया-----

घर छोटा और गाड़ी छोटी पर ---
दिल बड़ा रखना भैया 
मेरे छत के मुंडेरे  पे 
गाती जाए  सोन चिरैया-----

कुर्ते गंदे और जूते गंदे पर ---

नीयत  साफ रखना भैया 
मेरे छत के मुंडेरे पे 
गाती जाए सोन चिरैया ---

संदूक  खाली और हाथ खाली पर ---

आँखें भरी(सपनों से) रखना भैया 
मेरे छत के मुंडेरे पे 
गाती जाए सोन चिरैया ---

मन पर बंधन  तन पर बंधन  पर ---
दिमाग स्वतंत्र रखना भैया 
मेरे छत के मुंडेरे पे 
गाती जाए सोन चिरैया ---

Tuesday, January 7, 2014

मेरी माँ






सात जनवरी २ ० ० १ को काल के क्रूरतम चक्र ने 
मेरी माँ को मुझ  से जुदा  कर दिया था पर मुझे कई बार महसूस हुआ है कि अगर हम   किसी को बेइन्तहा  प्यार करते हैं तो दुनिया की  कोई ताकत हमें  उनसे जुदा नहीं कर सकती ---मैं जब भी कभी बहुत गहरे सदमें या दुःख में  घिरी रहती हूँ तो मेरी माँ सपने में आकर मुझे refresh कर देती हैं. आज माँ की  पुण्यतिथि है उन्हें गए तेरह साल हो गए पर ऐसा लगता है वो मुझसे दूर नहीं है यहीं आसपास हैं कहीं। वो मुझे दिखती हैं खेतों की  हरियाली में-- गेहूँ की  बाली में। मटर की  फली मुझे  बचपन में अच्छी नहीं लगती थी पर माँ इतने प्यार से तोड़ कर खिलाती थीं कि मै 
मना नहीं कर सकती थी। मटर ,चने और सरसों की  भाजी मुझे तब भी अच्छी लगती थी और आज भी अच्छी लगती है पर मटर की  फली आज सबसे ऊपर है प्राथमिकता कि सूची में। खरीदी हुई नहीं --खेत में लगी हुई। जब भी मौका मिलता है---मैं फसल से भरे खेतों में अवश्य जाती हूँ। अजीब सा सुकून मिलता है मुझे वहाँ।

              माँ को समर्पित है मेरे दिल के कुछ उदगार ------


हरियाली उनकी आन थी 
हरियाली उनकी शान  थी 
बहुत बड़ी हस्ती,,,,,,?  तो नहीं थी पर,,,,,मेरी माँ ,,,,
एक सरल-सहृदया  किसान थीं।  

जिसकी ममता का भंडार कभी 
खाली  नहीं होता था,,,

उस ममत्व की  कमी से --कभी-कभी लगता है ----
   ---- ये दुनिया वीरान ----

  -----    तेरे बिन -----
सूना हो गया मेरा मायका --मेरी माँ ---

तेरी जैसी माँ हर किसी के नसीब नहीं है 
    मेरे जैसी हर बिटिया  खुशनसीब नहीं है 

तेरे संग बिताये हर लम्हे को 
अपनी बिटिया के संग जीती हूँ 
बेटी नहीं अब माँ बन कर
 दुःख-दर्दों को पीती  हूँ ---

 कभी-कभी खुद से कई सवाल करती --
तेरी मुनिया ---कैसी अजीबोगरीब है ये दुनिया ?
जिसके लिए पुल बनाओ वो खाई खोद देता है 
जिसे सम्मान दो वो अपमान के गर्त में धकेल देता है 
जिसका फायदा करवाओ वो नुकसान करवाता है-- वहीँ --
दूसरी ओर एक अजनवी बिना लाभ-हानि की  परवाह किये 
इतना मान-सम्मान दे जाता है कि आँखें भर आती हैं और 
दिल गदगद हो जाता है ---
तेरी दी हुई हर शिक्षा मुझे  मार्ग दिखलाता है. 

हर पल  जो ख़ुशी से जियें  उसे कहते हैं--जी-वन-
इतना अच्छा जीवन देने के लिए माँ--तुम्हेँ---  बारम्बार नमन.....