Tuesday, May 13, 2014

बनाना चाहो तो

बनाना चाहो तो 
बिगड़ जाता है 
चाँद चाँदनी की 
 हर कोशिश पे 
खिलखिलाता है 
क्या हुआ  जो
रास्ते पे चट्टान 
आ गिरी 
चट्टान से बचकर 
निकलना मुझे आता है 
बिना कुछ कहे चाँदनी 
खिलखिलाती है 
हो परिपूर्ण बुलंद हौसले से 
चाँद से नज़रें मिलाती है 
उबड़-खाबड़ रास्तों पे 
रहती सबसे हिल-मिल 
लहरों के रथ पे हो सवार 
करती रहती झिलमिल