बहुत दिनों के बाद थोड़ी सी राहत मिली है.सोचा इस पल को यादगार बना लूँ …२९ दिसम्बर २०१३ की रात में देखे गए सपने की झलक को २९ जून २०१४ में वास्तविक रूप में घटते देखा,,,, कोई माने या न माने ,,,,पर मैं मान गई.… मेरे उसी सपने को समर्पित है मेरे दिल के ये उदगार ------
अपने-अपने स्वार्थ की खातिर
सही राह से भटका देते हैं
सपना ---सपने में आकर
मुझे राह दिखलाते हैं ----
नहीं चाहिए ऐसे अपने
नहीं चाहिए कोई नाम
मेरे अपने सपने हैं
उनको मेरा सलाम ------
अपने-अपने स्वार्थ की खातिर
सही राह से भटका देते हैं
सपना ---सपने में आकर
मुझे राह दिखलाते हैं ----
नहीं चाहिए ऐसे अपने
नहीं चाहिए कोई नाम
मेरे अपने सपने हैं
उनको मेरा सलाम ------